top of page
Search

सनातन ज्ञानकोष

अगम्यं नटं योगिभिर्दण्डपाणिं प्रसन्नाननं व्योमकेशं भयघ्नम्।स्तुतं ब्रह्ममायादिभिः पादकञ्जं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।

जो योगिजनों के लिए भी अगम्य हैं, जो नाट्य कला में प्रवीण हैं, दण्डपाणि हैं, प्रसन्नमुख हैं तथा जिनके केश (किरण) व्योम (आकाश) तक व्याप्त हैं,जो भयों का नाश करने वाले हैं, जिनके चरण कमलों की स्तुति ब्रह्मा और माया आदि करते हैं, ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करने वाले विश्व के स्वामी भगवान विश्वनाथ का मैं भजन करता हूं।।

 
 
 

Recent Posts

See All
ॐ हनुमते नमः

श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये श्री हनुमान जन्मोत्सव की सभी श्रद्धालुओं एवं देश वासियों को मंगलमय शुभकामनाएं! प्रभु श्री राम के परम भक्त,...

 
 
 

Comentários


CALL US 7042088704

Find Us 

@trusthindu on Twitter

© 2023 by Sanatan Hindu

bottom of page