top of page
Search

सनातन ज्ञानकोष

"यद्यदेव प्रसक्तं हि वितर्कयति मानवः ।

अभ्यासात्तेन तेनास्य नतिर्भवति चेतसः।।"

अर्थात - "मनुष्य जिस-जिस वस्तु का लगातार चिंतन करता है, अभ्यासवश उसी की ओर उसके मन का झुकाव होता जाता है ।"

 
 
 

Recent Posts

See All
ॐ हनुमते नमः

श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये श्री हनुमान जन्मोत्सव की सभी श्रद्धालुओं एवं देश वासियों को मंगलमय शुभकामनाएं! प्रभु श्री राम के परम भक्त,...

 
 
 

Comments


CALL US 7042088704

Find Us 

@trusthindu on Twitter

© 2023 by Sanatan Hindu

bottom of page