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सनातन ज्ञानकोष

"माता मित्रं पिता चेति स्वभावात् त्रितयं हितम्।

कार्यकारणतश्चान्ये भवन्ति हितबुद्धयः॥"

अर्थात -"माता, पिता और मित्र तीनों स्वभावतः बिना अपेक्षा के हमारे हित हेतु सोचते हैं। अन्य व्यक्ति यदि हमारे हित की सोचते हैं तो उसके बदले में कुछ न कुछ अपेक्षा भी रखते हैं।"

 
 
 

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